प्रकृति ने केवल स्त्री को ही इस आशीष से नवाज़ा है कि वह एक नए जीवन की जीवनदायिनी होती है, माँ होती है! प्रसव पीड़ा से उबर कर स्त्री एक नया जन्म पाती है! न केवल शिशु अपितु माँ का भी एक नया जन्म होता है! एक स्त्री प्रसव पीड़ा से गुज़रकर सबसे पहले अपने शिशु का मुख देखती है, फिर किसे अपने समीप देखना चाहती है दुनिया भर की भीड़ में किसका चेहरा देखना चाहती है किसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू और चमक एक साथ देखना चाहती है किसके चेहरे पर गर्व, स्नेह और चिंता के मिले-जुले भाव पढ़ना चाहती है अपने माथे पर किसका स्पर्श पाना चाहती है जो उसे छूकर धीमे से उसके चेहरे के करीब आकर पूछे, तुम ठीक तो हो न इन सभी प्रश्नों का जवाब एक ही है! वह पुरुष जिसे अपना सर्वस्व सौंपकर उसने मातृत्व पाया है! वही जो उसकी देह और मन दोनों का स्वामी है! जिसने उसके मन को जीतकर देह पर अधिकार पाया है!