वो उसे सिगेरट सुलगाते देखती रही.. उसके जलते सिरे को देख कांपती रही.. जोर से बंद किया दरवाज़ा देर तक उसके चेहरे पर किसी थप्पड़ सा बजता रहा. लगातार ३ सिगरेट पीने के बाद भी दीपक का मन अशांत ही लग रहा था खुद से सवाल जवाब करता हुआ दीपक ने वापस आते ही सवाल जड़ दिया. ‘क्या ज़रुरत थी अभी इस आफ़त की तुम संभाल नहीं सकती थीं. गवारों की तरह सारी हरकतें. मेरे सोशल सर्किल में मज़ाक बन जाऊँगा, पर तुम्हें क्या तुम्हें तो पोतड़ें धोने हैं. हाउ द हेल विल आय मैनेज ’ अवाक रह गयी थी नंदिनी. “ अबो्र्ट कराओ इसे !!! मैं नही अफ्फोर्ड कर सकता अभी तुम्हारा बच्चा “