’अजिया पांय लागी।’ कभी थोड़ा हाथ उठाकर कभी सिर हिलाकर आषीश देतीं चील्हा अजिया। सफेद धोती, हाथ में डोल्ची जिसमें सिंधौरा, बाती, धूप और अक्षत आदि पूजा का सामान होता । दूली बाबा तीस बरस पहले ही साथ छोड़ गये थे। उनके समय से ही नवरात्री का अनुश्ठान होते आ रहा था। कई दिन पहले से ही तैय्यारी षुरु हो जाती। ऊपर तक घर की पोताई करतीं। इधर-उधर की माटी न लातीं। झांड़ा बीर बाबा के तालाब की पूर्ण षुद्ध। बाकी ताल-तलैया तो गूं-गोइड़हरी वाले थे।