कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ। उधर काशी के मन्दिरों में अछूतों के प्रवेश, गरीबों के लिए मकान बनवाने आदि समस्याओं को लेकर आन्दोलन छिड़ जाता है और सरकार से संघर्ष होता है। इस आन्दोलन का संचालन सुखदा, पठानिन, रेणुकादेवी और यहाँ तक कि समरकांत भी करते हैं। ये सब और डॉक्टर शांतिकुमार जेल-यात्रा करते हैं। नैना भी वहाँ आ जाती है और एक जलूस का नेतृत्व करते हुए चुंगी की ओर जाती है। वहाँ उसका पति मनीराम उसे गोली मार देता है। उसकी मृत्यु से चुंगी के मेम्बरों में भी हृदय - परिर्वतन हो जाता है और वे ग़रीबों के मकानों के लिए ज़मीन दे देते हैं। जो आन्दोलन सुखदा ने प्रारम्भ किया था, उसका अंत नैना की बलि से होता है। लखनऊ के सेण्ट्रल जेल में अमरकांत, मुन्नी, सकीना, सुखदा, पठानिन, रेणुका आदि सब मिल जाते हैं। धनीराम का पुत्र मनीराम मृत्यु को प्राप्त होता है।