गोदान भाग 32

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गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है। इसी मुश्किल और असंभवता को प्रेमचंद ने गोदान का सार बना डाला है । गोदान अंतत: दो सभ्‍यताओं का संघर्ष है एक ओर किसानी सभ्यता है जिसका प्रतिनिधित्‍व होरी करता है जबकि दूसरी ओर महाजनी सभ्‍यता है ।