(कहानी) ईदा... — एम0 हनीफ मदार बीस वर्ष लम्बा काल खंड भी ईदा को मेरी मनः—स्मृतियों से मिटा नहीं पाया । उस समय ईदा को समझ पाने की न मेरी उम्र थी न ताक़त । पूरे गांव के लिए आधा पागल ईदा मेरे लिए भी इस से ज्यादा कुछ नहीं था । मैं तब आठवीं ही पास कर पाया था कि, पिता को मजदूरी की तलाश शहर में ले आई और ईदा बहुत आसानी से मेरे बचपन से दूर हो गया । वक्त के अध्ययन के साथ ईदा मेरी जिज्ञासाओं में प्रौढ़ होता रहा या कहूं बचपन की यादों में