भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष जीवन के साथ कदमताल करता सिनेमा सुभाष सेतिया कला के सभी रूपों में सबसे नई विधा होते हुए भी सिनेमा आज सबसे लोकप्रिय कला विधा का रूप ले चुका है। यही नहीं यह हमारे जीवन के सबसे करीब भी हो गया है। निषेध और वर्जनाओं के साथ भारतीय जीवन में प्रवेश करने वाली फ़िल्में आज हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बनकर सभी कलाओं को अपने में समेटे न केवल मनोरंजन का सबसे सुलभ साधन है बल्कि जीवन की हर गतिविधि से ताल मिलाकर चलते हुए, वह हमारे दुःख—सुख का सच्चा साथी बन गया