गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है। यह सड़क सामंतवाद के पतन की और पूंजीवाद की जीत की निशानी है । वह अपना जीवन मर्यादा केपरम्परागत मिथ को पाने के लिए झोंक देता है और अपनी मृत्यु के समय भी गाय के दान जैसे काम को न कर पाने के दुख से भरा हुआ है, ये तो विद्रोहिणी धनिया ही है जो मजदूरी के सिक्के को मृत होरी के हाथ में दबा घोषणा करती है कि यही होरी का गोदान है।