परीक्षा-गुरु - प्रकरण-28

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थोड़ी देर पीछै मुन्शी चुन्‍नीलाल आ पहुँचा परन्‍तु उस्‍के चेहरे का रंग उड़ रहा था. लाला सै उस्‍की आंख ऊँची नहीं होती थी. प्रथम तो उस्‍की सलाह सै मदनमोहन का काम बिगड़ा दूसरे उस्‍की कृतघ्नता पर ब्रजकिशोर नें उस्‍के साथ ऐसा उपकार किया इसलिये वह संकोच के मारे धरती मैं समाया जाता था. तुम इतनें क्‍यों लजाते हो ? मैं तुम सै जरा भी अप्रसन्‍न नहीं हूँ बल्कि किसी, किसी बात मैं तो मुझको अपनी ही भूल मालूम होती है.