मदनमोहन का पिता पुरानी चाल का आदमी था. वह अपना बूतादेखकर काम करता था और जो करता था वह कहता नहीं फ़िरता था. उस्नें केवल हिन्दी पढ़ी थी. वह बहुत सीधा सादा मनुष्य था परन्तु व्यापार मैं बड़ा निपुण था, साहूकारे मैं उस्की बड़ी साख थी. वह लोगों की देखा-देखी नहीं अपनी बुद्धि सै व्यापार करता था. उस्नें थोड़े व्यापार मैं अपनी सावधानी सै बहुत दौलत पैदा की थी. इस्समय जिस्तरह बहुधा मनुष्य तरह, तरह की बनावट और अन्याय सै औरों की जमा मारकर साहूकार बन बैठते हैं, सोनें चान्दी के जगमगाहट के नीचे अपनें घोर पापों को छिपाकर सज्जन बन्नें का दावा करते हैं,