गरीब के लिये पड़ाव क्या और मंजिल क्या रास्ता आसान क्या और कठिन क्या उसे तो जब तक सांस है तब तक चलते जाना है अपनी मजबूरियों के साथ। इसी रास्ते में कहीं आम की छाँव मिल जाये तो सुस्ता लिए और कभी केरी सी कोई ख़ुशी मिल जाये तो उसे चुन ले। रोड़े काँटे पत्थर तो वहाँ भी मिलते हैं तब अफ़सोस भी होता है कि काश आसान राह चुनी होती पर जब सुस्ता कर आगे बढ़ते हैं तो लगता है थोड़ा कठिन सही पर इस रास्ते की कोई मंजिल तो है।