परीक्षा-गुरु - प्रकरण-16

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अब तो यहां बैठे, बैठे जी उखताता है चलो कहीं बाहर चलकर दस, पांच दिन सैर कर आवैं लाला मदनमोहन नें कमरे मैं आकर कहा. मेरे मन मैं तो यह बात कई दिन सै फ़िर रही थी परन्तु कहनें का समय नहीं मिला मास्‍टर शिंभूदयाल बोले. हुजूर ! आजकल कुतब मैं बड़ी बहार आ रही है, थोड़े दिन पहलै एक छींटा होगया था इस्सै चारों तरफ़ हरियाली छागई है. इस्‍समय झरनें की शोभा देखनें लायक है मुन्शी चुन्‍नी लाल कहनें लगे.