ज्योतिष की बिध पूरी नहीं मिल्ती इसलिये उस्पर बिश्वास नहीं होता परन्तु प्रश्न का बुरा उत्तर आवे तो प्रथम हीसै चित्त ऐसा व्याकुल हो जाता है कि उस काम के अचानक होंनें पर भी वैसा नहीं होता, और चित्त का असर ऐसा प्रबल होता है कि जिस वस्तु की संसार मैं सृष्टि ही न हो वह भी वहम समाजानें सै तत्काल दिखाई देनें लगती है. जिस्पर जोतिषी ग्रहों को उलट पुलट नहीं कर सक्ते, अच्छे बुरे फल को बदल नहीं सक्ते, फ़िर प्रश्न करनें सै लाभ क्या ? कोई ऐसी बात करनी चाहिये जिस्सै कुछ लाभ हो मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.