कहानी चीख धीरेन्द्र अस्थाना ठोस अंधेरे में भय की तरह चमकता हुआ क्षण था वह जब मुझे बताया गया कि कुन्नी घर से चला गया है। चला गया है? कहां चला गया है? चला कैसे गया? भला कुन्नी घर से कैसे जा सकता है? सवाल थे कि चारों तरफ से मुझे घेर रहे थे और मैं उनसे बचने की राह ढूंढता हुआ कभी पत्नी का चेहरा देखने लगता था, कभी मां का, कभी अपने बेटे का और कभी दीपक का, जो अभी तक काम से वापस नहीं लौटा था। मैं अक्सर दफ्तर से रात नौ—दस तक लौटता था। ग्यारह साढ़े