......उन आँखों में कुछ समाये कैसे, जिन आँखों में इंतज़ार ने डेरा डाल रखा था। कभी कभी यूँ ही बैठे बैठे मामी कुछ गुनगुना उठती, शायद कोई सौहर या बन्ना। या हो सकता है मामा की याद में कोई विरह गीत ही रहा हो। ...बस स्पर्श की बोली से हम एक-दूसरे की कुशल कामना करते रहे।