अपने आपको विश्लेषण करने बैठता हूँ, तो देखता हूँ, जिन थोड़े-से नारी-चरित्रों ने मेरे मन पर रेखा अंकित की है, उनमें से एक है वही कुशारी महाशय के छोटे भाई की विद्रोहिनी बहू सुनन्दा। अपने इस सुदीर्घ जीवन में सुनन्दा को मैं आज तक नहीं भूला हूँ। राजलक्ष्मी मनुष्य को इतनी जल्दी और इतनी आसानी से अपना ले सकती है कि सुनन्दा ने यदि उस दिन मुझे 'भइया' कहकर पुकारा, तो उसमें आश्चर्य करने की कोई बात ही नहीं। अन्यथा, ऐसी आश्चर्यजनक लड़की को जानने का मौका मुझे कभी न मिलता।