पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो सिरापियन के धमार्श्रम के लिए खाद्यपदार्थ लिये जा रही थी, अपनी यात्रा समाप्त की और निज स्थान को लौट आया। जब वह किश्ती पर से उतरा तो उसके शिष्य उसका स्वागत करने के लिए नदी तट पर आ पहुंचे और खुशियां मनाने लगे। किसी ने आकाश की ओर हाथ उठाये, किसी ने धरती पर सिर झुकाकर गुरु के चरणों को स्पर्श किया। उन्हें पहले ही से अपनी गुरु के कृतकार्य होने का आत्मज्ञान हो गया था।