श्रीकांत - भाग 9

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कलकत्ते के घाट पर जहाज जा भिड़ा देखा, जेटी के ऊपर बंकू खड़ा है। वह सीढ़ी से चटपट ऊपर चढ़ आया और जमीन पर सिर टेक प्रणाम करके बोला, 'माँ रास्ते पर गाड़ी में राह देख रही हैं। आप नीचे जाइए, मैं सामान लेकर पीछे आता हूँ।' बाहर आते ही और भी एक आदमी झुककर पैर छूकर खड़ा हो गया। मैंने कहा, 'अरे रतन कहो, अच्छे तो हो?' रतन कुछ हँसकर बोला, 'आपके आशीर्वाद से। आइए।' यह कहकर उसने रास्ता दिखाते हुए गाड़ी के समीप लाकर दरवाजा खोल दिया।