कितना भी प्रयत्न करूँ कि कहीं काम से जाते समय उनसे सामना न हो, पर हो ही जाता है. वे अपने घर के सामने आसन जमाकर बैठे ही रहते हैं –सर्दियों में छोटे से लॉन के बीचोंबीच बैठ कर धूप में ऊँघते हुए, गर्मियों में उसी से सटे हुए बरामदे में साए में जम्हाइयां लेते हुए. दूर से देखो तो भ्रम होता है कि ऊंघ रहे हैं पर सामने से निकलने वालों का इतना सौभाग्य कहाँ कि बच निकलें.