मौसी

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‘‘मैं अपने लिए दुलहिन खोजूँ या फूफी के लिए दूल्हा?’’ चिल्ला-चिल्लाकर, सुना-सुनाकर कह रहा था मोहना और मौसी (मोहना की फुआ को सभी मौसी कहकर पुकारते थे) को पटक-पटककर मार रहा था। थप्पड़ों से मारते-मारते उसके हाथ थक जाते, तो वह घूँसों से मारने लगता। घूँसे मारते-मारते ऊब जाता, तो लातों से मारता। पर मौसी थी कि प्रतिकार न कर, मार खाए जा रही थी। मोहना को बचपन से ही बेटे की तरह पाला है मौसी ने। अपनी भाभी से पैदा होते ही उसे माँग लिया था उसने। आँचल में जो लिया, सो अब तक मोहना साथ ही है।