दिन के खाने के बाद सम्पादक जी का कक्ष अन्दर से बंद हो जाता था. पूरे एक डेढ़ घंटे तक वे अपनी महिमामंडित मेज़ की बगल में लगे हुए आरामदेह सोफे पर लेटते थे. इस बीच उनके आराम में खलल डालने की मजाल किसी में नहीं थी. यदि कोई अपवाद था तो उनकी सुन्दर सेक्रेटरी जिसकी टेबुल उनके पावन कक्ष के बाहर सुरक्षाकर्मी की तरह लगी हुई थी. एक वही थी जिसका अधिकाँश समय सम्पादक जी से डिक्टेशन लेने तथा अन्य बेहद ज़रूरी कामों के लिए सम्पादक जी के कक्ष के अन्दर ही बीतता था.