तुम्हारे गम की डली उठा कर, जुबा पे रख ली है मैंने ! ये कतरा- कतरा पिघल रही है, मै कतरा- कतरा ही जी रही हूँ ……………….! शुभी पुराने अल्बम की तस्वीर पलटते -पलटते …एक तस्वीर पर नज़र टिक गयी जो उसके बचपन की थी ………गुलज़ार की ये ग़ज़ल सुनते सुनते न जाने किन यादों में खो गई ……. वो भी तो एक शाम ऐसी ही थी ……आसमान पर काले बादल ………..ठंडी ठंडी बहती पुरवाई ……बच्चों का बाहर आपस में खेलना