और दूसरे दिन से ही सभी बच्चे अपने-अपने निर्धारित कार्यों में बड़ी ही मुस्तैदी के साथ जुट गए। बालकों का उत्साह तो देखते ही बनता था। उत्साहित बच्चों से भी अधिक उत्साहित तो अपने घोष बाबू दिखाई दे रहे थे। बचपन और पचपन का अनौखा संगम था, बुद्धि और शक्ति का अनौखा मनुहारी संगम।