1.) दोष गैर के देखना, गुण अपने की बात। बुरा रोग है मित्र ये, कैसे मिले निजात।। 2.) फल तो सबको चाहिए, बिना किये कुछ काज। शेरों जैसे हो रहे, गीदड़ ने अंदाज।। 3.) सच अपमानित हो रहा, मिले झूठ को मान। मिले पराजय ज्ञान को, जीते अब अभिमान।। 4.) पैसा सबको चाहिए, वो भी छप्पर फाड़। करे फलों की कामना, भले वृक्ष हो ताड़।। 5.) मतलब के सब दोस्त हैं, मतलब का व्यवहार। रिश्ते अब ऐसे हुए, जैसे हो व्यापार ।।