Ek Subha Ka Mahabharat

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फिर एक दिन की बात है। सर्दियों की शाम। गाड़ी का इंतजार करने वालों की भीड़ कम थी। शायद कोई छुट्टी थी उस दिन। मैंने बेसब्री से उसी परिचित कोने पर निगाह घुमाई। वह नहीं थी। मैं निराश सा प्लेटफार्म पर चलकदमी कर रहा था कि अचानक वह दिखाई दी। एक बेंच पर बैठी थी। चेहरा फिल्मफेयर में छिपा था। मैं हौले से पास जाकर खड़ा हो गया। सामने मुझे देखकर चौंकी, “आप...?” मैं हँसा, “आज तुम्हें ढूँढ़ने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ी अरुंधती।”