बचपन की बातें याद करती है नीना, तो मन दौड़-दौड़कर नानी के गाँव जा पहुँचता है। और फिर सालवन गाँव की यादों में ऐसे रम जाता है कि समय का कुछ पता ही नहीं चलता। नीना जब छोटी थी, कोई दस-ग्यारह बरस की, तब तो हालत यह थी कि कोई छुट्टी होते ही उसकी चीख-पुकार शुरू हो जाती थी, “चलो माँ, चलो, नानी के गाँव में। बताओ, कब चलोगी नानी के गाँव में?”