कभी अँधेरा कभी सवेरा’ दूसरा कविता संग्रह है जिसमें मानव मन स्पष्ट रूप से अंतर्द्वंद से कभी जीतता हुआ प्रतीत होता है कभी अपनों के बिछोह और अन्धकार में अत्यंत दुखी चेतन रूप से मनुष्य जान रहा है अन्धकार, पापचार,और बुराई का नाश साहस, धीरता और जागृति से संभव हो रहा है, सामाजिक जागृति या लहर इसका प्रमाण है फिर भी अन्धकार का प्रभाव, शोक ,एकाकीपन इस जागृति या प्रकाशपुंज पर अपनी छाप छोड़ते हैं , अँधेरे और सवेरे का पारस्परिक प्रभाव है संक्षेप में दोनों ही दृश्यों की अनुभति से मानव मन भावरहित शून्यता की स्थिति में हो गया है