बहुत छोटी-सी थी नीला। कोई आठ बरस की। उसे और लड़कियों की तरह ज्यादा बातें करना पसंद नहीं था। बढ़िया कपड़े पहनने का भी शौक नहीं था। जब देखो, अपने में खोई रहती। कुछ न कुछ पढ़ती रहती। अपनी किताबें तो पढ़ती ही थी, घर में कोई किताब या पत्रिका आती, तो उसे भी अटक-अटककर पढ़ती। फिर खुश होकर अपने आप से कहती, “अरे वाह, मैं तो इसे भी पढ़ सकती हूँ। मैं तो बहुत कुछ पढ़ सकती हूँ। बड़ी होकर तो मैं बहुत पढ़ा करूँगी।”