रात के तीसरे पहर तनसुख ने आखिरी बार नींद लेने की नाकाम कोषिष की। वह चाहता था कि सारे दुख-दर्द भूलकर घंटेभर की नींद आ जाये तो जींदा रहा जा सकता है। अन्यथा तो दर्द से सर फलभर में फटने वाला है और सर ही क्या, आज तो धरती भी फट सकती है। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कड़ाहट आज की रात जिस तरह से हो रही है उसे सुनकर धरती के बचने की कम ही उम्मीद नजर आ रही थी उसे। वह बार-बार रजाई में मुहं देकर आंखें बंद कर रहा था। फिर भी बाहर की आवाजें सीधी उसकी आत्मा से टकराती। इतनी स्याह रात थी कि रजाई से बाहर कमरे का दरवाजा तक दिखाई नहीं दे रहा था। बाहर-भीतर, सब जगह अंधेरा था। उसके दोनों बच्चे बगल की चारपाई पर अपनी मम्मी से कसकर चिपके हुये थे।