डाॅक्टरों की तमाम कोषिषों के बावजूद भी गुलाब नबी की तबीयत लगातार गिरती जा रही थी। सब जतन हो गये लेकिन बिमारी थी कि पकड़ में ही नहीं आ रही। डाॅक्टर दवा दे सकते हैं, आॅपरेषन कर सकते हैं और जरूरत हुई तो किसी अंग का प्रत्यारोपण भी कर सकते हैं लेकिन वे किसी को गाना नहीं गवा सकते। नचा नहीं सकते। और गुलाब नबी के जीने से जरूरी था उसका गाना और नाचना। यह बात तो सिर्फ गुलाब नबी के अब्बा के अलावा दिल्ली में कोई नहीं जानता था कि होष संभालने के बाद उसने पहली बार नाचना और गाना बंद किया है। वह तो हरदम नाचता रहा था। कई बार तो नींद में भी उसकी टांगे फुदकती हुई देखी गई। शायद वह ख्वाब भी अपने तरह के देखता था। जब किसी रात वह नींद में खड़ा होकर नाचने लगता तो उसकी अम्मा, जिसका नाम रेषमा था वह उसे पकड़कर चारपाई पर सुलाती। सुबह जब गुलाब नबी से पूछा जाता कि रात को क्यों नाच रहे थे तो उसे कुछ भी याद नहीं रहता।