Khot

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मेरे एक बहुत ही अजीज़ दोस्त की शादी थी अजीज़ इस लिए था कि मुझे ज्ञान बखेरने का दौरा पड़ता तो वो एक मासूम बच्चे की तरह श्रोता मिल जाता वो मुझे सहन करता था या मैं उसे, यह तो अभी तक तय नहीं हो पाया मगर इतना तय जरुर था की हम दोनों को कोई तीसरा सहन नहीं कर पाता अजीब मुसीबत आ पड़ी थी उसके दिमाग पर पढ़ने की धुन सवार हो गई और मेरे दिमाग पर पैसा कमाने की आज तक तो साफ़ हो गया है कि न वो पढ़ सकता है और न ही मैं कमा सकता हूँ लेकिन उन दिनों को कौन समजाये जब ख़्वाब को हकीकत मान लेते थे, अब हालात यह है कि हकीकत भी कभी कभी ख़्वाब सा लगती है