‘चलो एक अफसाना बुनते हैं।' हम चार दोस्तों के बीच मंजीतवा (वैसे तो ‘सिंह' था) किसी के बोलने का नम्बर ही नहीं आने देता था। चार लाइन किसी लेखक की याद कर लाता और हर बार की तरह बहस में नोनस्टोप एक घंटे तक बोलता रहता। आज भी शुरू हो गया