बैलगाड़ी पर खेत जाना और वहां सारा दिन खेल कर शाम को घर आना हमेशा याद आते हैं। बचपन में बैलगाड़ी की सवारी जो आनंद देती थी वह आनंद अब ठंडी वातानुकूलित कारों में कहाँ मिलता है। रामेसर बाबा तब हमारे खेत में ही रहते थे। एक दिन हम जब खेत गए तो बाबा अपने लिए खाना बना रहे थे या शायद बना चुके थे , खाने की तैयारी कर रहे थे। काम करते हुए उनकी नज़र पास ही जाती हुई ,धूल उड़ाती हुई जीप पर थी। हम लोग पास पहुंचे तो वो झट से बोले ," जानते हो बच्चों उस जीप में हमारे प्रधानमंत्री नेहरू जी थे !" " हैं !! पंडित जवाहर लाल नेहरू जी !!!" हम चारों एक साथ चौंक कर बोले। " हाँ भई ! वो नेहरू जी थे। उनको मेरे हाथ का बना खाना बहुत पसंद है। जब भी इस तरफ आते हैं तो मेरे पास जरूर आते हैं। " बाबा बहुत गंभीर बने बोल रहे थे। हमें ऐसे लगा ही नहीं कि वे झूठ बोल रहे हैं। और हम सब तो दस-बारह साल के ही तो थे। बहुत भोले थे। आज की पीढ़ी जैसे बच्चे नहीं थे। " तो बाबा आपने हमें क्यों नहीं बताया हम भी तो मिल लेते !!" मैंने थोड़ा सा मचलते और निराशा से कहा। " वो कल भी आएंगे ! कल मिल लेना। लेकिन किसी को बताना मत। उनको भीड़ नहीं चाहिए यहाँ। " बाबा ने बहलाते हुए कहा तो हम सब बहुत खुश हुए।