घूंघट के पट् खोल रे

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" राधिका ! तुम क्यों चली गई अब इस उम्र में मुझे अकेला छोड़ कर ?" आँसू ढलक गए आँखों के किनारों से। आँखे पोंछते हुए आँख खोली, धीरे से करवट ली। बच्चों से ज्यादा लगाव ही नहीं था। बच्चे कम ही याद आते थे। कुछ गलती राधिका जी की भी थी। उनको पिता और बच्चों में ढाल नहीं बनना चाहिए था और ना ही संदेशवाहक ही। कोई भी काम या जरूरत होती तो बच्चों को ही प्रेरित करना चाहिए था। इस से उनमें आपस में खाई तो नहीं बनती। माधव जी शाम की चाय पी कर पास ही के पार्क में चले जाते हैं। आज जाऊँ या ना जाऊँ वाली मनस्थिति में थे कि कहीं फोन आ गया तो !