कहानी खुल जा सिमसिम धीरेन्द्र अस्थाना के. आ रही थी। मेज पर उसका पत्र खुला पड़ा है। वही लिखावट है जिसे मैं आंखें बंद कर उंगलियों के स्पर्श मात्र से पहचान सकता हूं। बिना कॉमे, फुलस्टॉप के लिखी जाने वाली के. की लिखावट। वह पत्र नहीं लिखती, पत्रों में बहती है। और जो बह रहा हो उसे इतना अवकाश अथवा होश कहां कि वह अर्धविराम या पूर्णविराम का व्यवधान स्वीकार करे। के. का पत्र शुरू होने के बाद सीधा खत्म होता है लेकिन अंतिम शब्द लिखने के बाद भी वह पूर्णविराम का प्रयोग नहीं करती। के. से वजह पूछी थी