ठाकुर का कुँवा

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दानों पानी भरकर चली गई तो गंगी वृक्ष क छाया से निकली और कुँए की जगत के पास आयी बेफिक्रे चले गये थे ठाकुर भी दरवाजा बंद कर अंदर आंगन में सोने जा रहे हैं गंगी ने क्षणिक सुख की साँस ली किसी तरह मैदान तो साफ़ हुआ? उसने सोचा अमृत चुरा लाने के लिए जो राजकुमार किसी जमाने में गया था वह भी शायद इतनी सावधानी के साथ और समझ बुझ कर न गया हो गंगी दबे पाँव कुँए की जगत पर चडी, विजय का ऐसा अनुभव उसे पहले कभी भी नहीं हुआ था उसने रस्सी का फंदा घड़े में डाला, और दाए बाएं चौकनी दृष्टी से देखा की...