महायात्रा

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कहानी महायात्रा रमेष खत्री मो. 09414373188 ‘हे राम....! हे....राम.......' की कराहटोें के साथ सुबह होती , यह सब पिछले तीन महिनों से चल रहा है; पर उस दिन मन उदास हो गया, अभी तक सुबह का सूरज पूरी तरह रात के अंधेरे को पी भी नहीं पाया था एक तरह से अंधेरे और उजाले के बीच संक्रमण का समय था । यह सब प्रकृतिजन्य था या मन के अतिरेक का परिणाम समझ नहीं पाया । इतना तय था मन अंधेरे के गर्त में गोते लगाने को विवष था तभी ‘हे राम... हे... राम .....' की कराहटों ने उबार लिया ।