काइयाँ

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कहानी रमेष खत्री 9414373188 काइयाँ आज फिर दफ्तर पहुँचने में देर हो गई । रामदीन के साथ अक्सर ऐसा होता है । वह रोज़ सोचता है, ‘आज देर हो गई सो हो गई, पर कल तो जरूर अपने निर्धारित समय पर दफ्तर पहुँचूगा । लेकिन उसका कल किसी स्वप्न की तरह उसकी सोच में ही बना रहा । वह आज में कभी तब्दील नहीें हो पाया । हमेषा कल के रूप में ही उसके सामने चुनौती बना डटा रहा । कल जो दूर था, अगम था, उसकी पकड़ से बाहर था, वह वैसा का वैसा ही बना रहा और उसकी