कहानी रमेष खत्री 9414373188 जूते ‘‘माॅँॅं....मॉँ....मुझे भी जूते चाहिये'' रामू ज़िद करते हुए अपनी माॅँं के सामने फैल गया, पिछले कई दिनों से वह अपने लिये जूतों की ज़िद कर रहा है । वह जब भी किसी बच्चे को जूते पहने हुए देखता है तो उसकी इच्छा और ज्यादा बलवती हो हुंकारे मारने लगती है, उसका मन हलकान हो जाता और मन में दबी इच्छा उसके सामने पहाड़ सी तन जाती । तभी वह अपनी मॉं के सामने ज़िद की पोटली खोल देता । जब उसके हम उम्र बच्चें मंहगे मंहगे जूते पहनकर उसके सामने इठलाते हुए चलते हैं तब