धन्धे का समय

  • 3.3k
  • 948

कहानी रमेष खत्री धन्धे का समय 09414373188 एक झटके के साथ बस चल पड़ी । बस के चलते ही सब कुछ चलायमान हो गया । बस में बैठे यात्री धक्का मुक्की छोड़कर अपने आस पास ही जगह की जुगाड़ में जुट गये । जिसको जहॉँ भी जगह मिली वह वहीं टिकने की जुगाड़ लगाने लगा । किन्तु बस तो पूरी भरी हुई थी । उसमें तो पैर रखने की जगह भी नहीं थी । स्थितियाॅँ कितनी भी दुरूह क्यों न हो जिनको जाना है वो तो कैसे भी करके जायेंगे ही । मजबूरी आदमी से जोे न करवाये वह थोड़ा