क्रांति की हॉकी खेलने की चाह को महसूस करके और उसकी ज़िद को हद से ज़्यादा बढ़ता देखकर रमिया की चिंता बढ़ गई। क्रांति इन दिनों काफी उदास रहने लगी थी और उसकी उदासी का कारण रमिया अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए एक दिन रमिया ने उसे समझाते हुए कहा, "क्रांति बेटा, तुम्हें इस तरह से उदास देखकर मुझे बहुत दुःख होता है। तुम नहीं जानतीं पता नहीं कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं और उसकी शुरुआत तो घर परिवार से ही हो जाती है। सबसे पहले तो तुम्हारे पापा, वह तो तुम्हें पहली सीढ़ी पर ही खड़े मिल जाएंगे।