(काल्पनिक कहानी, सर्वाधिकार सुरक्षित)---------------------- ----------------------------- -------------------"बुआ, क्या बनाऊं..." बीस साल की मधुरिमा ने बेहद उदास स्वर में पूछा"ऐसे पूंछ रही हौ बिटिया जैसे घर भरा पड़ा है सामान से" भगवतगीता बन्द करते हुए पचपन वर्ष की सुशीला बोलीं, फिर बड़ी मुश्किल से कमर पर हाथ रखते हुए बुदबुदाई"हाय जे कमर का दर्द तो जान लेकर रहेगा...हे ईश्वर, मैं तो खुशी से चली आती तेरे पास.. लेकिन बिटिया.. कहॉं जाएगी फिर ""कितनी बार कहा है आपसे ऐसी, बातें मत करा करो ...अभी चौदह दिन ही हुए है बाऊ जी को गए, और आप"कहते हुए रमा की आँखे नम हो गयीं"अच्छा..अच्छा रो