सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी। सूरज की हल्की सुनहरी किरणें कमरे में फैली हुई थीं। दीवार पर टंगी घड़ी की टिक-टिक के बीच, सूरज गहरी नींद में था। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मानो कोई प्यारा सपना देख रहा हो। सपने में वह शायद अनामिका को देख रहा था, उसकी मुस्कान, उसकी कविताओं की गूंज... सब कुछ।इतने में उसकी बहन तारा कमरे में आई। उसने धीरे से खिड़की के परदे हटाए और सूरज के सिरहाने आकर कहा, "भाई, उठ जाओ। आज तो तुम्हें अनामिका के लिए ख़त लिखना है!"तारा की आवाज़ सुनकर सूरज चौंककर