मुक्त - भाग 1

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       -------- मुक्त  ( भूमिका ) कही से भी शुरू कर लीजिये आप को समझ पड़ जायेगी। ये कोई भी नकल के आधारत नहीं है, मै जिम्मेदारी लेता हुँ कि ये उपन्यास कुछ हट के है, जज्बात और भाबुक से बढ़ के कुछ जो रब करता है, हम हमेशा ही उसको खुश करने मे समाजिक रिश्तों को कयो भूल जाते है..... बस यही कहने का प्रयास किया है। इस मे और है एक तिलमिला ते जज्बात बस।शुरू होता है कुछ इस  ढंग मे.....युसफ खान का एक छोटा सा घर शुरू होता  है.... एक बड़े से कस्बे मे... उस  मे