"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -३१)डॉक्टर शुभम और रूपा फ़ोन पर बातचीत करते हैं।रूपा बताती है कि बच्चों में युक्ति जैसा गुण न आना चाहिए।अब आगे..डॉक्टर शुभम:-'मैंने अकेले ही अपने संस्कारों से बच्चों को पाला है। मेरी जिम्मेदारी बच्चों के प्रति है,फिर भी मैं ख्याल रखूंगा। सब कुछ ईश्वर के अधीन है।'रूपा:-'मैं तुम्हें इसलिए सावधान कर रही हूं कि मां-बाप के गुण-दोष बच्चों में भी आ जाते हैं। अगर तुमने तब भी मुझसे शादी की होती तो बात कुछ और होती। प्रांजल और परितोष को माँ का प्यार मिल जाता और उनकी सार-संभाल कर सकती। मैं जानती