'सुबह जब चिड़ियाँ बोल रही थीं, वे पीसफुली सो रहे थे। और वह थकान और जगार से उनींदी बिस्तर में एक अप्रतिम सुख से सराबोर सोच रही थी कि अब शायद वह एक ऐसी स्त्री बन जाय जो उनसे संबंध बनाए रखकर भी अपने परिवार में बनी रहे। अपनी संतान को अपने नाम से चीन्हे जाने के लिए संघर्ष करे। शायद उसे सफलता मिले! परिस्थिति-वश एक सामाजिक क्रांति के बीज उसके मन में उपज रहे थे। और फुलझड़ी से झड़ते चेहरे में तमाम पौराणिक स्त्रियों के चेहरे आ मिले थे...।वातावरण निर्माण के लिए स्थानीय स्तर पर कलाजत्थे बना दिए गए