आधुनिकता का पैमाना आधुनिकता की चकाचौंध में,शहर की जनता खो रही है।आकर्षण में बंधी हुई,अपनी बर्बादी बो रही है।ए.क्यू.आई. बढ़ता जाता,सांसों में घुलता जहर।प्रकृति की पुकार अनसुनी,हम बढ़ते जा रहे हैं शहर।धुएं की चादर ओढ़े,आसमान भी रोता है।हरियाली की जगह अब,कंक्रीट का जंगल होता है।आधुनिक जीवन की चाह में,हमने सब कुछ खो दिया।स्वच्छ हवा, नीला आसमान,सब कुछ धुंधला हो गया।आओ मिलकर सोचें,कैसे बचाएं इस धरा को।आधुनिकता के साथ-साथ,संभालें प्रकृति की धरोहर को।अब आता हूं देहाती स्टाइल ड्राइविंग पर.. शहरों की सड़कों पर, देहाती ड्राइविंग का आलम,पार्किंग की समस्या, बन जाती है कालम।गांव की सड़कों पर, जहां खुला आसमान,शहर में वही ड्राइविंग, बन