जुबान खामोश हैं पर कलम बोलती हैं l हृदय में उठते लब्जों को खोलती हैं ll दिल की बात सुनके दिल की कहतीं है l वो सदाकत का साथ देकर डोलती हैं ll उमड़ते भावों ओ उर्मि को किताबों में l लिखने से पहले शब्दों को मोलती हैं ll खुद ही न्यायालय की खुर्शी में बैठकर l न्याय को लिखते वक्त अक्षर तोलती हैं ll अपने अरमान और जज्बातों को लेकर l ही बेज़ान कोरे काग़ज़ को टटोलती हैं ll १६-११-२०२४ नाराज है पर इतना मलाल नहीं हैं l आँखें रोने की बजह से लाल