आज खुद को किसी की जुबान से सुना एक नन्ही सी परी ओर इतने बड़े बड़े शब्दों में सिमटी हुई कुछ तो गुजर रहा होगा जिन्दगी में उसके जो खेलने कूदने खिलकर हंसने की उम्र में डिप्रेशन,एंजायटी, hospital, काउंसलिंग जैसे शब्दों को इतना गहराई से जानती हैं वो नन्हा सा बचपन उस दौर में है जहां जीवन ही बेमाना लगता है यूं तो कई हाथ हैं उसके पास पर वो एक कंधा जिसपे सर रख कर सहमी हुईं वो रोक पाती अपने आसू अपना दर्द अपनी बेचैनी और अपनी घुटन उसे देखा उसकी बातों में एक दोस्त को तलासते हुए