सनातन - 4

कथा में आज मैंने यही विषय उठा लिया :मैंने कहा, 'हमें अपने भीतर ही रमण करना चाहिए। गीता में इसे आत्मा से आत्मा में रमण करना कहा गया है। पर आत्मा को खोजेंगे तो उलझ जाएँगे। मन सरलता से उपलब्ध हो जाएगा। मन हमारे अत्यंत निकट भी है। इसलिए मन से मन में ही रमण करें। मन दो क्या दस भी हो सकते हैं। मन उतने हो सकते हैं जितने आप चाहें। आप सभी जानते हैं कि राम जब अयोध्या लौट कर आए तो समस्त प्रजाजन उनसे एक साथ मिलना चाहते थे। राम ने सोचा कि इतना तो मेरा आकार